सुधरले यार ! जिंदगानी, सभी चोरोंने खाई है
(तर्ज : अगर हैं ग्यानको पाना...)
सुधरले यार ! जिंदगानी, सभी चोरोंने खाई है ।
बडे डाकू हैं अंदरमें, जराभर सौख्य नाही है ।।टेक।।
बना मुखत्यार है तेरा, डुबाया कामने सारा ।
क्रोधकी साथ है उसको, पुरी नेकी जलाई है ।।१।।
न कोई ग्यानको माने, हुआ बूढ़ा बिछानेपर ।
कहा करता है बे ! मानो, नाहक क्यों मौत आई है ? ।।२।।
बिचारी बहिन है भक्ती, बडी रोती है अंदरमें ।
न सुझने दे अहं उसको, हटावे नम्रताई है ।।३।।
कहे तुकड्या तऱ्हा ऐसी, भरी है जिंदगानीमें ।
मिले बिन सद्गुरु कोई, जरा नहिं शांति आई है ।।४।।