कहाँ ईश्वर पडा बंदे ! भटकता भौंर फिरता है

(तर्ज: अगर हैं ग्यानको पाना... )
कहाँ ईश्वर पडा बंदे ! भटकता भौंर फिरता है ।
न देखे राहको उसकी, तु अपनी मौज करता है ।।टेक।। 
हजारों शास्त्रको देखे, भजनको तालमें सीखे । 
लगाता है समाधीको, दबा दमको बिछरता है ।।१।।
कहीं तीरथमें ढूँढनको, टहलता है पतालेश्वर ।
लगाता कानसे चंदन, गले माला  पहरता   है ।।२।।
कहीं आसन लगाकरके, चढाता ध्यान योगीसा ।
कहीं मूरतको ले करके, फुलोंके हार छाता है ।।३।।
अरे ! सबही करे तो क्या ? न करनीको जरा देखे ।
कपट छल द्रोहसे हरदम, लगता तारी सुहाता है ।।४।।
लगाता दिलको विषयोंमें, न बंधन दे कभी उसको ।
वह तुकड्यादास कहता है, राहबिन झूठ करता है ।।५।।