छोड मगरूरी, भज सदगुरुको
(तर्ज : नैनन में बस जा गिरिधारी..)
छोड मगरूरी, भज सदगुरुको ।।टेक।।
मगरूरीसे खावत गोता, नाश करे नर अपने बरको ।।१।।
लीन रहनेसे ईश्वर पावे, टूटत बंधन फाँसे उरको ।।२।।
सत्-मारग बिन गति नहि पावे, देवत साख गुरु हरिहरको ।।३।।
तुकड्यादास कहे सुन भाई ! काट करो मगरूर जरूरको ।।४।।