तनमें करो कोई खोज जी ! आनंद -कंद है

(तर्ज : किस देवताने आज मेरा...)
तनमें करो कोई खोज जी ! आनंद-कंद है ।
गुरुके कृपाबिना न खुले, ताल बंद है ।।टेक।।
अभ्यास सदा साधकर लगे रहो भितर ।
देख तभी पायगा निजघर आनंद है ।।१।।
जल रही  है ज्योतियाँ, न बूझती कभी ।
न तैल है, न बात, रंग-भंग मंद है ।।२।।
न ढूँढकर पता चले, न बाहरी दिखे ।
गुरु-दयाको साधलो तो फिर  अनंद है ।।३।।
स्थीर चित्तको करो, करो मनन सदा ।
तुकड्या कहे भजो प्रभू, तो टूटे बंध है ।।४।।