दिन चले बीते हैं सारे, कब मिलोगे दासको ?

(तर्ज : क्यों नहीं देते हो दर्शन... )
दिन चले बीते हैं सारे, कब मिलोगे दासको ? ।।टेक।।
चैन ना पड़ती हमें, तेरे दरसबिन पल -घडी ।
आँखियाँ तरसा रही, तुम कब मिलोगे दासको ? ।।१।।
वस्तु दुनियाकी रसीली, सुन्न सब दिखती मुझे ।
बस लौ सदा है एकही, तुम कब मिलोगे दासको ? ।।२।।
गा रही है गीत मैेना, बागकी हरियालिमें ।
ना मुझे मीठी लगे, तुम कब     मिलोगे   दासको ? ।।३।।
कहत तुकड्या नाचता है, मोर बनमें रंगसे ।
भाता नही दिलको जरा, तुम कब मिलोगे दासको ? ।।४।।