साधों ! खोज करो तनमों

(तर्ज : भले वेदांत पछाने हो...)
साधों ! खोज करो तनमों, भटकते क्यों हो बनबनमों ? ।।टेक।।
क्षमा-शांतिका गंगाजल है, स्नान करोरे उनमों ।
अंतर कपट निकालो धोकर, आओ निर्मल बनमों ।।१।।
ग्यानाग्नीसे क्रोध, लोभ, मद, जलाहि डारो सारा ।
आसन निरालंबमें साधो, पिओ प्रेमकी धारा ।।२।।
अजपाजाप जपो तनमाँही, लाओ सूरत-तारी ।
अस्ती भाती प्रीय रूपसे, रँगजा हर परकारी ।।३।।
कहता तुकड्या सद्गुरु खोजो, पूछो मारग खासा ।
साक्षी केसे रहना जगमें ? तोडो झगड़ा झाँसा ।।४।।