अगर भवपार होना हो

(तर्ज : लगा ले प्रेम ईश्वरसे... )
अगर भवपार होना हो, तो मत पंथोमें फँस जाना ।
चढाकर ग्यान की बूटी, प्रभूके नाम जप जाना ।।टेक।।
हजारो पंथ हैं जगमें, सभी हैं स्वार्थके साथी ।
कोई बिरला गुरू  पावे,    उन्हीसे      रंग     चढवाना ।।१।।
चढो नहि रंग ऊपरका, चढाना वृत्तिकी लाली ।
सदा अलमस्त धुन प्रभुकी, उसीमें दिलिको बहिलाना ।।२।।
न वैष्णव हो, न हो शिवका, न हो कोई किसीका भी ।
तू हो अपनेही आतमका, उसीका ग्यान  कर    जाना ।।३।।
सभी है एकही ईश्वर, ये ऊपर भेद हैं सारे ।
वह तुकड्यादास कहता है, समझ यह दिलमें भर जाना ।।४।।