स्वरूप पहिचान लो अपना

(तर्ज : लगा ले प्रेम ईश्वरसे... )
स्वरूप पहिचान लो अपना, सहजमें वह समाया है ।
भटकते क्यों दिवानेसम ? खोज लो अपनी काया है ।।टेक।।
अमोलिक जन्म मानवका, मिला अपनेको इस जगमें ।
गुरुबिन पार ना पावे, वही      मारग     बतैया    है ।।१।।
पूछकर  संतसे अपने, करो पहचान आतमकी ।
कौन मै ? क्या मेरा रूप है ? कहाँ कैसे समाया है ?।।२।।
भरम दिलका हटाकरके, चढो दरबार ईश्वरका ।
समा लो रूपमें उसको, हटाकर मोह  -  माया  है ।।३।।
वह तुकड्यादास कहता है, बखत फिरसे नही आवे ।
समझो खूब यह दिलमें, समय फिरके न आया है ।।४।।