सुना मैंने गुरू - जनसे प्रभू सबके भरा घटमें

(तर्ज : लगा ले प्रेम ईश्वरसे.... )
सुना मैंने गुरू - जनसे प्रभू सबके भरा घटमें ।
जिधर देखो उधर वह है, है मंदरमें, है मसजिदमें ।।टेक।।
अगर यह हाल जो सच है, तो हमको भूल क्यों ऐसी ? ।
कि हम हिंदू वह मुस्लिम है जुदा कैसे खुदा हकमें ? ।।१।।
मेरा तो ख्याल यह होता, वही सब खेल करता है ।
प्रजा  -  राजा वही बनकर, मजा करता है   झंझटमें ।।२।।
कहीं वह हाथि बनकरके, लजाता चीटियोंकोभी ।
सुना था चिटियोंमें भी, भरा हूँ मैं  हि   हट  -  दटमें  ।।३।।
कहीं दिवाना बनकर वह, ख़ुदी मस्तीको पाता है ।
कहे तुकड्या अनुभवसे, पता पाता है घट  -  घट में ।।४।।