समझ यार ! तू, क्यों पगला बनता ?
(तर्ज : गुरुको देखो, अपने घटमाँही.... )
समझ यार ! तू, क्यों पगला बनता ? विषयमें काहे डूब मरता ? ।।टेक।।
झूठ मायामें, किसे सूख पाया ? जनमको आकर पछताया ।
दुःखकी व्याधी, नाहक लगवाया, प्रभूका नाम नही गाया ।
अंत जब आवे, संगमें को आता ? विषयमें०।।१।।
दिवाना बनके, सब मेरा कहता । नींदमें गफलतमें सोता ।
खबर नहि आती, प्राण कहाँ जाता ? लगाता मायासे नाता ।
कर्म करनेको, नेकी नहि पाता । पापकी गठडी बँधवाता ।
भूल यह ऐसी, काहे नहि तजता ? विषयमें०।।२।।
गुरुकी माया, अजब संग छावे । अमरपद भक्तनको देवे ।
छोड झंडझटसे, निजरूप बतलावे । शरण जो चले उसे पावे ।
गुरुकी किरपा, क्यों नहि भरपाता ? विषयमें०।।३।।
नेक कर करनी, धर साधूसंगा । लगा ले अँखियोंमें रंगा ।
भजनकी लाली, चढा अमर गंगा । रहे मायासे निःसंगा ।
कहा तुकड्याका, क्यों नहि अजमाता ? विषयमें०।।४।।