सोचकर चलो, समझ सुजानो हो !

(तर्ज: गुरुको देखो, अपने घटमाँही...)
सोचकर चलो, समझ सुजानो हो ! जगत यह अंधा, ख़ुण पाओ ।।टेक।।
संत-साधूके, जाओ चरणोंमे । भरोसा रखकरके जीमें ।
बोधको पाओ, अपने अंदरमें । रटो दिल लगाय मंदरमे ।
नामजप-तारी, ना छोड़ो धीमे । मस्त हो जाओ उस लौमें ।
मजा फिर देखो, ना भूले जाओ । जगत यह०।।१।।
बाचकर पोथी, खाली क्या होता ? बनेगा पढ़-पढ़के तोता ।
लपट हंकारा, अहंकार आता । प्रभूका प्रेम नहीं पाता ।
बिना संगतसे, झूठ सभी नाता । मिलेगा मायासे गोता ।
समझ यह पाओ, ना भूले जाओ । जगत यह०।।२।।
कृपालू स्वामी, दया करें तनमें । भटकते क्यों हो बनबनमें ? ।
चलो वा घरको, मत घबडो जी में । तरोगे भवसागर धीमे ।
यार! सुध पाओ, ना भूले जाओ । जगत यह०।। ३।।
संगती साधो, धीर धार मनमें । रोक लो मनको शम -दममें ।
दास तुकड्याकी, खबर सुनो छनमें । तरोगे इसही जीवनमें ।
कृपा हो जावे, निज-रुपमें न्हाओ । जगत यह०।।४।।