त्याग कर प्यारे, इस झूठे मनका
(तर्ज : गुरुको देखो, अपने घटमाँही ... )
त्याग कर प्यारे, इस झूठे मनका । साथ कर अपने आतमका ।।टेक।।
भरोसे मनके, जो गोते खाये । न वापिस देखे फिर आये ।
पुरे झटकाये, माया मन भाये । विषयसँग नाहक भरमाये ।
खबर नहि उनको, सुख क्या संतनका । साथ कर०।।१।।
गौरकर देखो, क्यों दुनिया पाई ? प्रभूने किसकारण भाई ।
बताई तुमको, हमको सबकोही ? बिना हरिसुमरण सुख नाही।
सूख पावनको, कर मन स्थिर भाई ! तभी अँखियोंमें रँग पाई ।
मजा ख़ुब पावे, चढे नशा उनका । साथ कर०।।२।।
कसा आसनको, लगा तार अपना ।छोड़कर दुनियाका सपना।
ध्यान धर दिलमें, उलट जमा नैना । चला जा चितसे अस्माना।
भ्रमरगुंफामें, निर्मल कर प्राणा । निशाना साध वहीं रहना ।
अमर हो जावे, संग करे तिनका । साथ कर०।।३।।
चढ़ा मन मौनी, निर्मल धरीमें । सत्-चित् की उजियारीमें ।
ध्वनी सोहंकी, रहती है जामें । रहे मन मगन सदा तामें ।
कहा तुकड्याका, मान जरा दिलमें ।जीव न रहे यह उलझनमें।
सदा सुख पावे, मिटे मेल मनका । साथ कर ।।४।।