छोड दे झूठोंका फंदा
(तर्ज : संगत संतनकी करले...)
छोड दे झूठोंका फंदा । असत्का मारग है अंधा ।।टेक।।
काम-क्रोधमें क्यों लपटा है ? होता है हैरानी ।
किसि दिन जमका मार पड़ेगा, भूलेगी यह बानी ।।१।।
सत् मारगकों धरले भाई ! सौख्य वहीं है अपना ।
बिना नामके कहूँ न रंग है, यह सारा है सपना ।। २।।
माड़ि-हवेली किसकी बैठी ? कौन रहेगा इसमें ? ।
बाप बडे तो भगे आखरी, गये कालके वशमें ।।३।।
साधु संतको पूज भावसे, ग्यान कियाकर बंदे ! ।
कहता तुकड्या समझ -समझसे, छोड़ झूठके फंदे ।।४।।