कलीने सबका मत मारा
(तर्ज : संगत संतनकी करले... )
कलीने सबका मत मारा । जुनाई शास्त्र-पंथ हारा ।।टेक।।
नीतिधर्मको मानत झूठा, एक किया सारा ।
कहाँ पाप और कहाँ पून है? सभी तोड़ि धारा ।।१।।
अपने पिताकों कहते हैं यह कहाँका बाप हमारा ? ।
विषय-वासना खूब बढी तब, पैदा जन्म हमारा ।।२।।
साधुसंतको कोउ न पूछे, लाखों साधुका तांडा ।
ब्रह्म - ग्यानकी करते बातें, घरमें रखते रांडा ।।३।।
श्रुति-शास्त्रोंको कोउ न माने, कादंबरिसे यारी ।
तुकड्यादास कहे यह आई, ऐसी रीत नियारी ।।४।।