झूठी मायामों भूला । आखरी खाबेगा झोला

(तर्ज : संगत संतनकी करे... )
झूठी मायामों भूला । आखरी खाबेगा झोला ।।टेक।।
देह-सौख्यको साच समझकर,विषयनके सँग डोला ।
अंतकाल फिर पछतावेगा, जमघर  जात    अकेला ।।१।।
मेरा मेरा कहते कहते, धन औरोंने घूला ।
यह न हुआ फिर वह न हुआ तो, झटके खावे खूला ।।२।।
सच्चा मारग छोड दिया और, मृगजलमें क्यों भूला ? ।
मानवजन्म गमाया बंदे ! फेर मिले नहि मेला ।।३।।
कहता तुकड्या दास गुरुका, भजले हरि की माला ।
तर जावेगा भवसागरमें, धर यह पंथ निराला ।।४।।