सुनले सुजान भाई ! ईश्वर सभी जगा है
(तर्ज : ईश्वरकों जान बंदे.... )
सुनले सुजान भाई ! ईश्वर सभी जगा है ।
काहेको ढूँढता तू ? तुझमेंभि वह लगा है ।।टेक।।
कहिं टूट जात छाया ? वैसीहि है यह माया ।
मायाभि वह बना है, फिर डर कहाँ लगा है ? ।।१।।
अग्यानसे जगतको, बूरी लगे यह व्याधी ।
बस ग्यानियोंको वह ही, सुखकी करे जगा है ।।२।।
जब संतसंग पाये, अग्यान दूर होकर ।
तब व्याधि ना रहेगी, निर्मल बने सगा है ।।३।।
तुकड्या कहे यह जानो, ईश्वर न भिन्न जी से ।
विश्वास दृढ बनाओ, वह सत्यमें रँँगा है ।।४।।