दिलखुशी फकीरी पाई । अब नही

(तर्ज : अलमस्त पिलाया प्याला... )
दिलखुशी फकीरी पाई । अब नही फिकर है भाई जी ! ।।टेक।।
हटाके दुनिया लगा बभूती, रंगे गुरु -पदमाँही ।
सतसंगतकी नशा चढाकर, निर्भयपदको पाई  जी ।।१।।
महल-अटारी क्या जाने अब ? रही न धनकी हाई ।
मिले जहाँपर रूखी सूखी, गरज भली करवाई जी ।।२।।
काम क्रोधको मार -मारकर, काबू अपल कराई ।
कफरकुफरको लगाके डंड़े, दिल भरवाया    साँई    जी ।।३।।
प्रेम  - भक्तिकी चढ़ाई कफनी, दयाकि माल धराई ।
तुकड्यादास कहे अब मनमें, जनम-मरण कुछ नाहीजी ।।४।।