क्यों चौरासी मों लटके ? मत भोगों
(तर्ज: अलमस्त पिलाया प्याला...)
क्यों चौरासी मों लटके ? मत भोगों आगे झटके हैं ।।टेक।।
अकुबत पाना चाहते हो तो, कुफर छोड दो हटके ।
कभी न छलबल करो किसीका, भजलों रामको डटके हैं ।।१।।
सच्चा मारग धरो मुसाफिर ! क्यों विषयोमें चटके ? ।
नेक करो नेकीसे पाओ, अमरपुरीके चुटके हैं ।।२।।
खोजो खालिक कहाँ समाया, राह चलो पट-पटके ।
कायर-बाना छोड़ो अपना, नहि तो पावे फटके हैं ।।३।।
कहता तुकड्या हरी भजन बिन, पिले न पद हरि-मठके ।
सोच सोचकर चलों जगतमें, पिओ शांतिके गुटके हैं ।।४।।