ख़ुलाकर नैनको देखो, नजारा मस्त होता है
(तर्ज : अगर है ग्यानकों पाना...)
ख़ुलाकर नैनको देखो, नजारा मस्त होता है ।
खुलाओ संत-संगतमें, वहीं मारग सुहाता है ।।टेक।।
भुले विषयोंमें क्यों फिरते ? न करते साच जगमाँही ।
भरोगे यार ! जम घरमें, मिलें जब अंत गोता है ।।१।।
करो साधन गुरु-घरमें, उलटकर ऊर्ध्व जानेका ।
पछानो रूप आतमका, लगाओ ग्यान-सुरता है ।।२।।
रक्त और शुभ्र ना नीला, नही बिंदू नही पीला ।
नहीं काला नहीं हीला, अजब रंगमें सुहाता है ।।३।।
वह तुकड्यादास कहता है, मिलाओ नैनका साक्षी ।
करो अभ्यास हरदममें, दरस प्रभु आप देता है ।।४।।