सम्हलके सो रहो भाई ! यहाँ चोरन लुटाती हैं

(तर्ज : अगर है ग्यानको पाना... )
सम्हलके सो रहो भाई ! यहाँ चोरन लुटाती हैं ।
पता लगता नही उसका, पकड़कर ले उठाती हैं ।।टेक।।
जगे हो, मन न जाने दो, किसी भी इश्क विषयोंमें ।
अगर वैसा भया मनसे, तो पुराही फँसाती है ।।१।।
रँगाती मोह-मायामें, सजाकर इद्रियाँ सारी ।
भुलाकर योग-जप सारे, नाकही ले कटाती हैं ।।२।।
जरा थोरी नजर भूली, कि करती नींदसी मनको ।
उछलती नागनी जैसी, न फिरके याद आती है ।।३।।
वह तुकड्यादास कहता है, रहो हुशियार नगरीमें ।
प्रभूकी याद ना भूलो, तो चारणोमेंभि आती है ।।४।।