है कौन हमें तुमबीन हरी !
(तर्ज : अजि ! कौन जगह जगनेकी है...)
है कौन हमें तुमबीन हरी ! । दुनियामें भरी नहि खब़ मेरी ।।टेक।।
सब चलतीके नजर दिखाते, झूठ लगाकर हमसे नाते ।
आखिर काम न कोउ परी । दुनियामें०।।१।।
जो देखे वह मतलबगर्जी, सबकी है धनपरही मर्जी ।
चोरनकी दिखती नगरी । दुनियामें०।।२।।
मानुजजन्म व्यर्थही जावे, तभि हमको प्रभु-दर्श न पावे ।
होगी जमकी द्वार-भरी । दुनियामें०।।३।।
तुकड्यादास कहे गिरिधारी ! मेहर नजर करदो अब पूरी ।
दे अपने रूपकी तारी । दुनियामें०।।४।।