किस कारण नरतन पाई हैं ?
(तर्ज : अजि ! कौन जगह जगनेकी है... )
किस कारण नरतन पाई हैं ? ।
क्यों खबर तुझे नर ! नाही है ? ।।टेक।।
लख चौरासी फिरकर मेरा, पड़ा यह दुर्लभ तन-उजियारा ।
क्यों झूठनमें गमाई है? क्यों खबर०।।१।।
सत्संगतकी निर्मल बाता, जिसमें जिया अमरफल पाता ।
व्यर्थ समय वह खोई है । क्यों खबर०।।२।।
झूठ कपट कर मन बिगराया, सिरपर पापका बोझ कमाया ।
जम-घर होगि बुराई है । क्यों खबर०।।३।।
तुकड्यादास कहे सुन भाई, बार बार बखती यह नाही ।
धर दिल वह रघुराई है । क्यों खबर०।।४।।