सब छोड मात तात, हरी - संग जाउँगी

(तर्ज : किस देवताने आज मेरा.. )
सब छोड मात तात, हरी - संग जाउँगी ।
जगत्‌कि बुरी बात, मन न मैं भुलाउँगी ।।टेक।।
मुझको न औरसे कही दरकार ही रही ।
हिरदेमें धरूँ ध्यान, राम - नाम    गाउँगी ।।१।।
जियजान मानसे प्रभूकी आसना धरूँ ।
मनके परे निजब्रम्हसे, नित लौ लगाउँगी ।।२।।
हमसे न बने और अब दूजा करार है ।
जिसकी बनी बनाई गयी, वह निभाउँगी ।।३।।
कुछ भी कहो रहो हमें न फिक्र है जरा ।
तुकड्या कहे हरदमपे दम प्रभू रिझाउँगी ।।४।।