कब आकर गोप जगावेंगे, वह धर्मके पालनहारे ?
(तर्ज : सखि ! जादुगर गिरिधारी.. )
कब आकर गोप जगावेंगे, वह धर्मके पालनहारे ? ।
भारतके प्राण हमारे ।।टेक।।
वह दिन ऐसा था भारतका, थी हररोज दिवाली ।
अबके बनगई होली, जबसे हरि बैकुंठ सिधारे ।।१।।
द्रुपद-सुताके पकड केशको, नग्न करनको लाये ।
लाखों वस्त्र बढाये जिसने, वह थे तारनहारे ।।२।।
बडे बडे थे रथी महरथी, कुरूक्षेत्रमें आये ।
अर्जुनकों दे ग्यान जिन्होंने, रण-कंदन कर डारे ।।३।।
गोप-गोपिपर पड़ी बिपत जब, गिरिवर हाथ उठाये ।
इंद्रका गर्व हराया जिसने, कंस असुरको मारे ।।४।।
जब जब बिपत पडी भारतमें, तब तब दु:ख हटाये ।
तुकड्यादास कहे वहि आये, दिन अब कौन सम्हारे ।।५।।