ऐ संतमहंतो ! जाग उठो, क्यों सोये आसनमाँही ?
(तर्ज : सखि ! जादुगर गिरिधारी...)
ऐ संतमहंतो ! जाग उठो, क्यों सोये आसनमाँही ? ।
सोनेका समय नहि भाई ! ।।टेक।।
आजतलक तो खूब उडाया, जजमानोंका पैसा ।
आइ बखत अब जजमानोंपर, अबके कौन सहाई ।।१।।
प्रभू गये निजधाम तभीसे, तुमको छोडा ग्वाही ।
भारतपर जब बिपत पड़ेगी, करना काम सवाई ।।२।।
सब तनमाँही बभुत रमाई, दुनियाको सुखवाने ।
समय वहीं अब आय बने, क्यों होते हो बहिराई ? ।।३।।
सब चेलोंको मंत्र बताकर, करदो सारी सेना ।
धर्मके खातिर जान मालको, अर्पण करो सहाई ।।४।।
हिंदुस्थाँ है वतन प्रभूका, हम यहाँके बासिंदे ।
देवभूमिको मत छुओ कोई, कहो जबाँके माँही ।।५।।
तुकड्यादास कहे सब साधू, करो प्रभूसे अर्जी ।
भारत दुखिया सुखी करो अब, देकर हाथ दुहाई ।।६।।