है चंदन चावल बेलकि पतियाँ
(तर्ज : सखि ! जादुगर गिरिधारी... )
है चंदन चावल बेलकि पतियाँ, सीस चंद्र जिन्हे प्यारे
वह भोलेनाथ हमारे ।।टेक।।
व्याघ्र कडासन मारकेआसन, साँप लिये गलमाँही ।
भस्म लगाकर सब अंग रंगे, मुंडमाल गल डारे ।।१।।
भंग चढे अडभंग नशेमें, लगी समाधी प्यारी ।
राम-नामकी धुनमें अपने, तनकी खबर बिसारे ।।२।।
बूढ़ा बैल सवारी हरदम, सिसपर गंगकि धारा ।
करमें डमरू शंख बिराजे, गर्ज गर्ज झनकारे ।।३।।
अर्धांगी वह सती पार्वती, पुत्र गणेश सहारे ।
जिनको प्यारा स्मशान सबसे, हरदम योग निहारे ।।४।।
हो जावे जब दया किसीपर, उसके भाग उबारे ।
तुकड्यादास कहे जब रूठे, पुरा फना कर डारे ।।५।।