अब काहेको धूम मचाते हो, दुखवाकर भारत सारे ?
(तर्ज : सखि ! जादुगर गिरिधारी...)
अब काहेको धूम मचाते हो, दुखवाकर भारत सारे ?।
आते है नाथ हमारे ।।टेक।।
जवबतक पाप भरा न पुरा तो, करलो मौज -भरारे ।
अब कुछ देर नही है उनको, उतरा गरूड किनारे ।।१।।
बीरोंमें हिमंत आवेगी, ले तलवार कट्यारे ।
दौर-दौरकर गजघोडोंपर, रणकंदन कर डारे ।।२।।
रावणने जब धुमधाम मचाई, लंका नाश कराई ।
कूद कूद बंदरसेनासे, राक्षस जलवा डारे ।।३।।
राजा कंस उमंगउमंगे, लीला कर वधवाई ।
किसिका गर्व सहे नहि प्रभुको, अपना कुल संहारे ।।४।।
भारत अब हिनदीन भया रे ! ना कोई यार ! सताओ ।
करनीके फल पाओगे, गर प्रभुका देश बिगारे ।।५।।
झाडझड़ूले शस्त्र बनेंगे, भक्त बनेंगी सेना ।
पत्थर सारे बाँम बनेंगे, नाव लगेगि किनारे ।।६।।
तुकड्यादास कहे मत भूलो, वे दिन आये हमारे ।
सब दुनियाका पालनकर्ता, उसके हैं हम प्यारे ।।७।।