हरिबिनु चैन ना परे । या जगमें जी घबरे

(तर्ज : उपवनिं गात कोकिळा.... )
हरिबिनु चैन ना परे । या जगमें जी घबरे ।। चैन०।।टेक।।
सब साथी स्वारथके, हमरे नहि इतउतके । देख मन डरे ।।१।।
जो जो कुछ साथ देत, चाहे अपनेहि हेत । प्रेम क्षण करे ।।२।।
इस जगमें चाह नही, प्रेमनकी राह नही । विषय हैं भरे ।।३।।
कहे तुकड्या जी न रहे, बन-बनमें दौरत है । प्रभु दया करे ।।४।।