हरिजन हरिसमान हैं । कुछ उनमों भेद नही
(तर्ज : उपवनिं गात कोकिळा... )
हरिजन हरिसमान हैं । कुछ उनमों भेद नही ।। हरि०।।टेक।।
जिनके मन पाप बसे, वे जन दूर हैं हरिसे । और ना रहे ।।१।।
हरिके घर जात एक, जातनकी बात एक । साच जो कहे ।।२।।
जिनके मन भेद परे, सो अपना भेद धरे । यह गुमान है ।।३।।
कहे तुकड्या दोष तजो, हरिभजके हरि रहिजो । यहहि ग्यान है ।।४।।