हरिजन कोन है नही ?
(तर्ज : उपवनिं गात कोकिळा... )
हरिजन कोन है नही ? बिन हरिके कौन भई ?।कौन०।।टेक।।
जो हरिसे प्रीत करे, सो हरिके हैं सगरे । और क्या नहीं ?।।१।।
चींटीसे हाथिनमें, गरिबनसे राजनमें । और क्या कहीं ?।।२।।
जो कुछ है दोष यहाँ, बतलाओ होश कहाँ ? जानि हम जहीं ।।३।।
यों हरि तो है सबमें, पर हरिके सुख न हमें । ग्यान ना जहीं ।।४।।
कहे तुकड्या पाप करे, सो हरिके सुख बिसरे । साच गम यहीं ।।५।।