हरिबिन कौन किसे जगमाँही ?

(तर्ज : जय जय विठ्ठल बोला...)
हरिबिन कौन किसे जगमाँही ? । हरिबिन ।।टेक।।
जबतक दानापानी पावे, तबलग सब जग प्रेम बतावे ।
फिर आखिरको कोउ न आवे, बडा दुख भाई ! बडा दुख भाई ! ।।१।।
सब चलतीकी दुनियादारी, धन-दारा-सुत-मितकी यारी ।
हे यार ! तू समझ धर पूरी, भजों यदुराई, भजों यदुराई ।।२।।
निर्भयपद एक हरिके पाये, जगमें वा सम कौन सुखाये ? ।
सब ऋषिमुनियोंने गुण गाये, तरे भव भाई ! तरे भव भाई ! ।।३।।
तुकड्यादास कहे सुध लाओ, प्यारे हो ! हरिके गुण गाओ ।
तब अंतकाल सुख पाओ, डरो नहि कोई, डरो नहि कोई ।।४।।