वह प्यारा बंसीवाला

(तर्ज : गैयाके पालनवाले ! तुमको...)
वह प्यारा बंसीवाला, जिसका सबमें है निवास ।
नर ! भजलो उसको दिलसे, काहे होते हो उदास ? ।।टेक।।
जहाँ नाम पुकारे कोई, वह वहाँ खडा हो जाई ।
कई रंग रूप बनवाई, उसको है भक्तोंकी आस ।।१।।
द्रौपदिने नाम उचारा, लाखोंही वस्त्र उबारा ।
पांडवको दिया अधारा, किया दुर्जनोंका नाश ।।२।।
जब धृवने नाम पुकारा, तब दौर-दौरकर तारा ।
दे दर्शन ऊँच किनारा, दीन्हा नभमंडलमें बास ।।३।।
जब पुकार गजने मारी, तब गरुड छोड गिरिधारी ।
ले दौरे चक्र मुरारी, छोडा दुखसे अपना   दास ।।४।।
कइं भक्त जमीपे तारे, कइं दुर्जनको संहारे ।
कहे तुकड्या आज हमारे, वहि पुरवावेंगे आस ।।५।।