जागो जागो भारतवासी !
(तर्ज : गैयाके पालनवाले ! तुमको...)
जागो जागो भारतवासी ! घरमें आगयी अंगार ।
चारोंभी कोने सुलगे, क्यों बैठे हो ठंडेगार ? ।।टेक।।
उस कालरूप शंकरने, यह काम उठाया करमें ।
जिवजून काट भरभरमें, जीवन कर दिया उजार ।।१।।
कोटिनके प्राण उचाटे, लाखोंके घर है टूटे ।
अब मिटे न यारो ! मिटाये, करलो मनमें बिचार ।।२।।
सब अपने कारण पाया, जो इतना शोर यह आया ।
यह शास्त्रोंने बतलाया, नैया आगयी मँझधार ।।३।।
अब एकहिं साधन याको, सब दूर करो मायाको ।
और कहो भाव ईश्वरको, पहुँचे जावेगा तार ।।४।।
सब संघ बनालो अपना, इसको नहि भुल अब जाना ।
तोडो पंथनको नाना, लागो एकके सहार ।।५।।
ईश्वरसे अर्ज सुनाओ, घरघरमें उसको गाओ ।
कहे तुकड्या प्रेम लगाओ, बेडा हो जावेगा पार ।।६।।