हरिके घर, नौबत बाज रही

(तर्ज : मोहनकी बंसी, बाज रही...)
हरिके घर, नौबत बाज रही ।।टेक।।
झिलमिल झिलमिल टपकत पानी, बिजली कडाड रही ।।१।।
रैन अंधेरी शाम  सुहानी,   अर्गन    ताड    रही ।।२।।
कहिं बंसी कहिं सूर-सरंगी, कहिं डफ धाड़ रही ।।३।।
तुकड्यादास कहे जब देखी, सुन्न  उजाड   भई ।।४।।