अजि ! शरणागत की, लाज रखे गिरिधारी
(तर्ज : मोहनकी बंसी, बाज रही... )
अजि ! शरणागत की, लाज रखे गिरिधारी ।।टेक।।
द्रुपद - सुताने नाम पुकारे, दौरत आये मुरारी ।।१।।
भर -भर वस्त्र पुराये उसको, ब्रिद की लाज सँवारी ।।२।।
गजके कारण उठ धाये हरि, उसके दुःख निवारी ।।३।।
तुकड्यादास कहे क्या कहिए, उन प्रभुकी बलिहारी ?।।४।।