तारक नाम तुम्हारा जगमें

(तर्ज: तुमबिन मोरी कौन खबर ले...)
तारक नाम तुम्हारा जगमें, को नहि कहत मुरारी ! ।।टेक।।
गावत गान पुराण सबेही, भक्ति - प्रिय गिरिधारी ।
बिन भक्तीके कुछ नहि जाने, साधन लाख पुकारी ।।१।।
मीठो नाम पुकारों धृवने, स्थान अमर दे डारी ।
नारायण नारायण कहते, प्रिय प्रल्हादको तारी ।।२।।
ऋषि वाल्मिकने नाम पुकारे, राम-भविष कथ डारी ।
सागरमें सेतू तरवाये, नामकी   यहि   बलिहारी ।।३।।
नाम जपें हनुमंत पवनसुत, कर द्रोणागिरी धारी ।
तुकड्यादास कहे नामहिसे, संकट गजके हारी ।।४।।