इतहूँते जगसे डरना है

(तर्ज: तुमबिन मोरी कौन खबर ले... )
इतहूँते जगसे डरना है, उतहूँ चैन न पाते ।।टेक।।
एक समय तो सीस दिये पर, अब नहि मार सहाते ।
यह न हुआ अरु वह न हुआ है, साच वही बतलाते ।।१।।
कामकें वारकी धार कठन है, कूदत कहर कराते ।
हो गर घरबारी इस दिलसे, तो   जग   मुँह   लजाते ।।२।।
ना सन्यास, न गृहके बासी, बीच अधर भरमाते ।
जीतेजी तो यह हालत कर, मरकर जमघर जाते ।।३।।
तुकड्यादास कहे क्या करना ? यह साधक सब रोते ।
मेरे मनसे वह सुख पावे, जो सच   हाल    बताते ।।४।।