अमर नही रहनेकी काया, नाहक क्यों भरमावे ?

(तर्ज: तुमबिन मोरी कौन खबर ले...)
अमर नही रहनेकी काया, नाहक क्यों भरमावे ? ।।टेक।।
देकर दुसरोंको दुख भारी, कौडी चोर उठावे ।
जब आवे जमराजका डंडा, छोड   सभी    चल    जावे ।।१।।
मेरा घर अरु कुटुमकबीला   यह    अभिमानसे    गावे ।
जब होवे सिर काल खडा तो, कुछ नहि   साथ  लिजाबे ।।२l।
धन तो जाय मगर यह तनभी, छोडके पर+घर जावे ।
तुकड्यादास कहे सुन रे नर ! क्यों नहि यह लख पावे ? ।।३।।