लहर बहर भई चूर । गोपिका

(तर्ज: चलत चलत मथुरा नगरिमों ... )
लहर बहर भई चूर । गोपिका ।।टेक।।
जमुना जलको जाय रही थी, बिच दखे प्रभु- नूर । गोपिका०।।१।।
जलका माठ पटक दे जलमें, हो गई बौर फितूर । गोपिका०।।२।।
मोरमुकुट कुंडल बनमाला, अँखियन देखि हुजूर । गोपिका०।।३।।
सुन मुरलीकी तान अनोखी, लगि काननकों मधुर । गोपिका०।।४।।
तन मन गई सब भूल रगमें, पड गई नैनन धूर । गोपिका०।।५।।
तुकड्यादास कहे प्रभु देखे, सुख पाई भरपूर । गोपिका०।।६।।