अमरपुरी बडि दूर, साधको !
(तर्ज: चलत चलत मथुरा नगरिमों ... )
अमरपुरी बडि दूर, साधको ! ।।टेक।।
जहँ नहि चंद्र-सुरजको बासा, नहि तारनके धूर । साधको ! ।।१।।
जहँ नहि दुनिया शोर शहरका, नहि नरनारिके नूर । साधको ! ।।२।।
जहँ नहि मैं तू भास भेदका, नहि पुन पाप बहूर । साधको ! ।।३।।
नहि चारोंभी वेद पुराणा, नहि है शब्द हुजूर । साधको ।।४।।
कहे तुकड्या जहँ मिटत कल्पना, तहँ पावत मामूर । साधको ! ।।५।।