वा प्रभुकी बलिहारी, हमरे

(तर्ज: चलत चलत मथुरा नगरिमों..... )
वा प्रभुकी बलिहारी, हमरे ।।टेक।।
कहिं लख चौरासीमें थे हम, हमको लाय उबारी । हमरे ।।१।।
कहिं तो थे हम गध्धे घोडे, दी मानुजकी    चोरी । हमरे ।।२।।
कहिं तो थे हम दुर्जनके सँग, दी भजनोंकी तारी । हमरे ।।३।।
कहिं तो थे गावनवाले हम, नैन भितर कर डारी । हमरे ।।४।।
तुकड्यादास कहे अंदरसे, सब कुछ देत निहारी । हमरे ।।५।।