जात उमर सब बीत, भजनबिन

(तर्ज: चलत चलत मथुरा नगरिमों ... )
जात उमर सब बीत, भजनबिन ।।टेक।।
पलपल काल लिखो हैं घडियाँ, सब है उसकी जीत भजन०।।१।।
जो कुछ करत काम बहिरनके, सब है उलटी रीत । भजन०।।२।।
बिषयबिना कछु सूझत नाही, नहि मानवको उचीत । भजन०।।३।।
मान जरा नर ! क्यों दुख पावे ? करले प्रभुसे प्रीत । भजन०।।४।।
तुकड्यादास कहे सुध लेलो, बिनहरि कोउ न मीत । भजन०।।५।।