कब दया करोगे दीनपर ?
(तर्ज : हम आशिक हैं उस नूरके...)
कब दया करोगे दीनपर ? ऐ निर्बलके गिरिधारी ! ।
प्रभू ! ऊँच शिखरपर बैठकर, मत देखो मौज हमारी ।।टेक।।
गर तुमको ऐसा करना है । हमरा पाप न पल हरना है ।
तब फिर कौन तरावे हमको ? भर नैना अब बावरी । ऐ०।।१।।
गर तुमको पापोंका डर है । तब तुम काहे बने ईश्वर है ? ।
ब्रीद तुम्हारा जायेगा यह, सोच दया करना हरी ! ऐ०।।२।।
अब दुनियाके हाल बुरे है । कइ करोड मर चुके मरे हैं ।
तुम्हरा नामहि बिसारके, सब नशा बुराईकी भरी । ऐ०।।३।।
भारतने सब नाम गमाया । तब तुम्हरेपर अप जश आया ।
मेरा भारत कहनेकी अब, ना रही तुम्हें उजागरी । ऐ०।।४।।
सब कंगाली छाय गई है । धर्मकि बाहें टूट रही है ।
तुकड्यादास कहे अब आओ, नहि तो लाज गई पुरी । ऐ०।।५।।