झपट दीपपर मारे
(तर्ज : अब दिन बीतत नाही...)
झपट दीपपर मारे ।।टेक।।
नहि देखत अपने तनहूको, कूद कूद तन डारे ।।१।।
सुंदर पंख किनार रंगीली, क्योंकर जलवा डारे ? ।।२।।
अचरज क्या देखे दीपकपर ? नहि तन जान सम्हारे ।।३।।
तुकड्यादास कहे बस तुने, नाम पतंग उधारे ।।४।।