सब डर तो जरके माथे है

(तर्ज : जोगन खोजन निकली है...)
सब डर तो जरके माथे है । हरिभक्त न कभु डर पाते हैं ।।टेक।।
उनका डर तो तभी गया, जबसे वे भस्म रमाते हैं ।
राम भजनको गाते है, दिल रामहिमें रँगवाते है ।।१।।
जहाँ चलें और जहाँ रहें, बस तुंबडी हाथ बगाते हैं ।
उस तुँबडीमें तुलसी कौपिन, हरदम नाम जपाते है ।।२।।
सब दुनिया जहागीर उन्हींकी, रूखा सूखा खाते हैं ।
दिया भला ना दिया भला इस ख्यालमें मौज उडाते हैं ।।३।।
आगे-पिछे राम हमारा यह सबको बतलाते हैं ।
हिंमत ऐसी रखते अपनी, धन धनको पैर बताते हैं ।।४।।
जीते ना डर रखे किसीका, मरे न जमके होते हैं ।
तुकड्यादास कहे वहिं आखिर, अपना नाम रखाते है ।।५।।