खद्दरमें मोज हमारी है

(तर्ज : जोगन खोजन निकली है...)
खद्दरमें मोज हमारी है । हम ना जाने जरतारी है ।।टेक।।
घर-गाँवोको मारके भूखा, जिसको मखमल प्यारी है ।
हम समझे वह अन्नारी है, जिसने नहि खादी  धारी   है ।।१।।
घरका दाना घरमें पीसे, जब गरिबनको मिलता है ।
तब उनका आत्मा फुलता है, बस दुआ करे महतारी है ।।२।।
सब कुछ हमरे गाँवमें बनता, जो कुछ हमको लगता हैं ।
यदि हम अपना भला करे तो, होता हर परकारी है ।।३।।
जो दुसरोंकी चीजपे नीयत रखता, वह दुख पाता हैं ।
एक दिन ऐसा आता है, बस लाज पड़ेगी सारी   हैं ।।४।।
तुकड्यादास कहे अपनालो, अपना जीवन खेडोंमे ।
बस घासकी कुटिया प्यारी है, उसमें मिलते गिरिधारी है ।।५।।