हरिजन से प्रेम हमारा है

(तर्ज : जोगन खोजन निकली है... )
हरिजन से प्रेम हमारा है । दुर्जन हमको नहि प्यारा है ।।टेक।।
वर्ण यदी अस्पृश्य रहे पर, ऊँचा कर्म जिसीका है ।
सो ईश्वरका प्यारा है, तब क्यों नहि होय हमारा   है ? ।।१।।
इस दुनियामें पाप भरा है, रीत नीत नर भूले है ।
पाप करें और भ्रष्ट रहे, फिर कहे यह स्पृश्य हमारा है ।।२।।
हम तो हरि-जन उनको समझे, जिनको सत्य सुहाता है ।
देश - भेष तो कुछ नहि जाने, सो जन प्रीय हमारा  है ।।३।।
तुकड्यादास कहे हरि गाओ, तो हरि-जन कहलाओगे ।
खाली वर्ण बताओगे, तो रखलो    ग्यान   तुम्हारा   है ।।४।।