सुनाओ बंसरी मोहन !
(तर्ज : अगर है शौक मिलनेका.... )
सुनाओ बंसरी मोहन ! तडपती गोपियाँ सारी ।
बिना बंसी सुने उनको, बिरह-दुख हो रहा भारी ।।टेक।।
रसीले नादको सुनने, कई बैठी हैं कुंजनमें ।
कई तो तीर जमुनाके, टहलती हैं लगा तारी ।।१।।
कई तो काम-सुध भूली, न उनको ख्याल है जीका ।
बावरीसी घुमे घरमें, कहे गिरिधारी ! गिरिधारी ! ।।२।।
कई तो बेचने दधिया, गई बाजार मथुरा के ।
कन्हैया लो, कन्हैया लो पुकारे ख्वाबसम मारी ।।३।।
मोहनी डारके मोहन ! छुपे क्यों जाय काननमें ?।
कहे तुकड्या तुम्हारे बिन, गोपियाँ धीर सब हारी ।।४।।