जिवनको व्यर्थ विषयोंमे, गमाना ना मुनासिब है

(तर्ज : अगर है शौक मिलनेका.. )
जिवनको व्यर्थ विषयोंमे, गमाना ना मुनासिब है ।
द्रव्य चोरी लबाडीका, जमाना ना मुनासिब है ।।टेक।।
मनुजकी देह हरदममें, न मिलती जानलो दिलमें ।
मिली तो पाप-कर्मोमें, डुबाना ना मुनासिब हे ।। १।।
समय जाता है पलपलका, लौट फिरके नहीं आता ।
फजुल गप्पे लगाकरके, टलाना ना मुनासिब है ।।२।।
जवानी चार दिनकी है, बुढापा फेर आवेगा ।
जगत-सेवा बिना क्षणभी, बिताना ना मुनासिब है ।।३।।
सदा सत्‌-संगमें रहकर, जीवको ज्ञान-पद देना ।
प्रभुके दर्शबिन जगमें, जियाना ना मुनासिब है ।।४।।
पशुओंकी तरह हरदम, चले खाना, पिना, सोना ।
जिना और व्यर्थही मरना, यह करना ना मुनासिब है ।।५।।
कहे तुकड्या प्रभू सुमरो, करो कुछ काम धर्मोके ।
बिना उध्दारके जगमें, रमाना ना मुनासिब है ।।६।।