कहीं लगे नहीं मन
(तर्ज: गोरा गोरा मुखडा.... )
कहीं लगे नहीं मन, चला बिरथा जीवन -
अरे ! राम-राम-राम ।।टेक।।
कहाँ लगेंगा हमें किनारा?
कौन करेगा साथ हमारा ??
दिखता अँधेरा तमाम । नहीं आता सीधा नाम ।
अरे ! राम-राम-रास ।।१।।
पापोंसे सब भरा बदन है ।
सच्चा काम ना किया जतन हैं ।।
यहाँ तो जाहिर है तमाम । कैसे पाये निजधाम ।
अरे ! राम-राम-राम ।।२।।
आस लगी है एक जगाकी ।
कीर्ती है सब जगमें जाँकी ।।
करेंगे सत्गुरु पूरा काम । बीना लिये न कोई दाम ।
अरे ! राम-राम-राम ।।३।।
इसीलिये पकडा हूँ चरण है ।
जीत सकूं आया भि मरण है ।।
तुकड्या पायेगा वह श्याम,फिर तो आरामहि आराम ।
अरे ! राम-राम-राम ।।४।।